उड़न सर्पों के जैसे उड़ने वाले रोबोट कैसे तैयार कर हैं वैज्ञानिक?

रॉबोट को इंसानी कार्य करने के लिए डिजाइन (Robot designed like Humans) करने का काम लंबे समय से किया जा रहा है. कुछ रोबोट किसी जानवर (Robots like Animals) की तरह विशेष तरह की गतिविधि करने के लिए भी डिजाइन किए जाते हैं तो वहीं हवाई जहाज तो नहीं लेकिन ड्रोन को पक्षियों की तरह उड़ने वाले रोबोट कहा जा सकता है और कई ड्रोन के तो आकार भी पक्षियों की तरह बनाए जाते हैं. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इससे भी आगे का सोचा है और वे उड़ने वाले सांपों यानि उड़न सर्पों (Flying Snakes) के जैसे रोबोट विकसित कर रहे हैं जो इन सांपों की तरह उड़ सकेंगे.

उड़ने की बेहतरीन क्षमता!

उड़न सर्पों में ग्लाइड करते हुए हवा में लंबी छलांग लगाने की क्षमता होती है जिससे वे उड़ते हुए प्रतीत होते हैं. उनकी इसी क्षमता और उनके विशेष आकार के संयोजन को देखते हुए एआईपी पब्लिकेश के फिजिक्स ऑफ फ्लूड में वर्जीनिया यूनिवर्सिटी और वर्जीनिया टेक ने उड़ने वाले सांपों की उड़ने की प्रणाली का अध्ययन कर रोबोट विकसित करने का काम किया विस्तृत क्षमताएं विस्तृत क्षमताएं है.

बहुत ही कुशल और तेज

ये सांप शिकारी जानवरों से बचने के लिए पेड़ों से जमीन तक बहुत ही कारगर और तेजी से ग्लाइड करते हैं. इस तरह की हलचल से वे लंबी दूरी तक ग्लाइड करने की क्षमता प्रदान करती है जिससे वे करीब 15 मीटर की टॉवर से 25 मीटर की दूरी विस्तृत क्षमताएं तक जा सकते हैं. इसी लिए शुरू से ही उन्हें उड़ने वाले सांप कहा जाता रहा है, जबकि वास्तव में ये केवल छलांग लगा पाते हैं.

सांपों की हलचल का गहराई से अध्ययन

इन सांपों की इस तरह की अनोखी उछाल वाली हलचल को समझने लिए शोधकर्ताओं ने एक तरह का कम्प्यूटेशनल प्रतिमान विकसित किया है. ये उन्होंने उन आंकड़ों के आधार पर बनाया है जो उन्हें इन उड़न सर्पों के वीडियो का गहराई से अध्ययन करने के बाद मिले हैं. इस प्रतिमान में उन्हें सांपों के शरीर के आकार और उनकी गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन किया है.

शोधकर्ताओं ने उड़ने वाले सांपों (Flying Snakes) की गतिविधियों का विशेष अध्ययन किया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

फ्रीब्जी डिस्क की तरह

सांपों का शरीर एक लंबी उड़ती हुई डिस्क की तरह होता है. अभी तक सांपों के उड़ने की गतिविधि को समझने लिए वैज्ञानिक उनके शरीर के क्रॉस सेक्शन का समझने का प्रयास करते हैं. फ्रिज्बी में धूमती हुई तश्तरी या डिस्क अपने नीचे एक ज्यादा हवा का दबाव बनाती है, ऊपर की हवा को खींच लेती है, उससे वह हवा में ऊपर उठ जाती है. सांप भी इसी तरह की प्रणाली पर काम करते है.

कैसे होती है सांपों की हलचल

फ्रीब्जी की तरह ही सांप अपने आसपास हलचल पैदा करते हैं जिससे उनके शरीर के नीचे तेज दबाव और उपर कम दबाव पैदा होते हैं. इसी से वे नीचे नहीं गिर पाते हैं और हवा में लंबी दूरी तक ग्लाइड कर पाते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि सांपों की क्षैतिज गतिविधि एक तरह की भंवर जैसी संरचना पैदा करती है जिसमें किनारे और पीछे के भंवर भी शामिल होते हैं. इसमें उनके शरीर के पीछे की सतह की अहम भूमिका होती है.

उड़ने वाले सांप (Flying Snakes) शरीर के नीचे ज्यादा और ऊपर कम दबाव पैदा करते हैं जिससे वे गिरते नहीं हैं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

कैसे बने रहते हैं लंबे समय तक हवा में

आगे का भंवर सिर के पास बनता है और शरीर के पीछे की ओर जाता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि ये भंवर खत्म होने से पहले सांप के वक्र शरीर पर लंबे अंतराल तक कायम रहते हैं जो सांप की हलचलसे पैदा होते हैं जो सांप के ऊपर उठे रहने की प्रणाली में अहम भूमिका निभाता है. इसके अलावा उन्होंने हवा के बहाव की तुलना में सांपों के बनाए जाने वाले कोण का भी अध्ययन किया.

इसी तरह के कई और कारकों का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया कि उनमें से कौन कौन से कारक इस प्रणाली में भागीदारी करता है. प्राकृतिक स्थितियों में उड़न सर्प इस तरह की हलचल एक सेकेंड में एक दो बार कर लेते हैं. हैरानी की बात यह है कि शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जितनी ज्यादा हलचल होती है उतना ही एरोडायनामिक परफॉर्मेस कम होता जाता है. ज्यादा हलचल से भंवर की संरचना में व्यवधान पड़ता है.

Agni 5 न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल है दुश्मन के लिए काल, जद में है चीन-पाकिस्तान सहित आधी दुनिया

Agni-5 nuclear ballistic missile Test: यह मिसाइल 5500 किलोमीटर के रेंज में अटैक कर सकती है. यह टेस्ट ओडिशा स्थित अब्दुल कलाम आइसलैंड से किया गया. मिसाइल का वजन 50 हजार किलोग्राम है.

Agni-5 nuclear ballistic missile Test: भारत ने अपनी डिफेंस क्षमता में एक और अध्याय जोड़ लिया है. भारत ने बीती रात अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइल (Agni-5 nuclear ballistic missile) का परीक्षण कर दुनिया को अपनी क्षमता का परिचय दिया है. यह टेस्ट इसलिए भी खास है कि इसे रात में किया गया. यह मिसाइल 5500 किलोमीटर के रेंज में अटैक कर सकती है. यह टेस्ट ओडिशा स्थित अब्दुल कलाम आइसलैंड से किया गया. मिसाइल का वजन (Agni 5 missile weight) विस्तृत क्षमताएं 50 हजार किलोग्राम है. इसकी लंबाई 17.5 मीटर है, जबकि इसका डायमेटर 2 मीटर है. भारत अब तक इसके आठ सफल परीक्षण कर चुका है.

मिसाइल 1500 किलोग्राम तक का परमाणु हथियार लोड करने में है सक्षम

खबर के मुताबिक, यह मिसाइल 1500 किलोग्राम तक का परमाणु हथियार अपने साथ लोड कर सकती है. मिसाइल में तीन स्टेज के रॉकेट बूस्टर हैं. यह सॉलिड फ्यूल से उड़ान भरते हैं. मिसाइल (Agni-5 nuclear ballistic missile) की स्पीड साउंड की स्पीड से 24 गुना ज्यादा है.इसे दागना बेहद आसान है. अग्नि-5 मिसाइल (Agni 5) मोबाइल लॉन्चर से दागी जा सकती है. मिसाइल को ट्रक पर लोड करके किसी भी जगह ले जाया जा सकता है.

19 अप्रैल 2012 को हुआ था पहला टेस्ट

भारत की जोरदार रेंज वाली मिसाइल का पहला टेस्ट 19 अप्रैल 2012 को किया गया था. इसके बाद, 15 सितंबर 2013, 31 जनवरी 2015, 26 दिसंबर 2016, 18 जनवरी 2018, 3 जून 2018 और 10 दिसंबर 2018 को सफलतापूर्वक किया गया था. कुल मिलाकर अब तक इस मिसाइल के सात टेस्ट (Agni-5 nuclear ballistic missile Test) किए जा चुके हैं. इस मिसाइल को डीआरडीओ ने तैयार किया है.

सैन्य क्षमता मजबूत कर रहा भारत

भारत बीते कुछ सालों में लगातार अपनी सैन्य क्षमता (हर तरह से) में बढ़ोतरी कर रहा है.भारत ने इस बीच कई मिसाइल का सफल परीक्षण भी किया है. चीन के बीच ताजा झड़प के बीच अग्नि 5 का यह टेस्ट दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रहा है. इससे पहले भारत ने मई 2022 में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विस्तारित रेंज संस्करण का सुखोई लड़ाकू विमान से टेस्ट किया था. यह ब्रह्मोस मिसाइल के विस्तारित रेंज संस्करण का सुखोई-30एमकेआई विमान से पहला प्रक्षेपण था.

अंतरिक्ष से धरती पर मौजूद पानी का सर्वेक्षण करेगी NASA, लांच की SWOT सेटलाइट

लॉस एंजिलिस। अमरीका की नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस विस्तृत क्षमताएं एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने पृथ्वी की सतह पर मौजूद लगभग पूरे पानी का पता लगाने के लिए नवीनतम पृथ्वी विज्ञान उपग्रह प्रक्षेपित किया है। सरफेस वाटर एंड ओशन टोपोग्राफी (SWOT) अंतरिक्ष यान को पश्चिमी अमेरिका के कैलिफोर्निया में वेंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस में स्पेस लांच कॉम्प्लेक्स 4 ई से शुक्रवार को 3:46 बजे स्पेसएक्स रॉकेट के ऊपर लॉन्च किया गया था।

नासा के अनुसार, उपग्रह पृथ्वी की सतह के 90 प्रतिशत से अधिक ताजे जल निकायों और समुद्र में पानी की ऊंचाई को मापेगा। नासा ने कहा कि इस जानकारी से यह तथ्य सामने आयेगा की समुद्र जलवायु परिवर्तन को कैसे प्रभावित करता है, कैसे एक गर्म दुनिया झीलों, नदियों और जलाशयों को प्रभावित करती है और कैसे समुदाय बाढ़ जैसी आपदाओं के लिए बेहतर तैयारी कर सकते हैं।

SWOT को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट के दूसरे चरण से अलग करने के बाद, जमीनी नियंत्रकों ने उपग्रह के सिग्नल को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया। नासा के अनुसार, SWOT अब लगभग छह महीने में विज्ञान डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले जांच और क्षमताओं की श्रृंखला से गुज़रेगा। नासा और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सेंटर नेशनल डी’एट्यूड्स स्पैटियल्स द्वारा कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसी और ब्रिटेन की अंतरिक्ष एजेंसी के योगदान के साथ संयुक्त रूप से विकसित, एसडब्ल्यूओटी पहला उपग्रह मिशन है जो नासा के अनुसार पृथ्वी की सतह पर लगभग सभी पानी का निरीक्षण करेगा।

प्रवासी कामगारों के मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने पर बल

क़तर में एक निर्माण स्थल पर प्रवासी कामगार.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR), ने ‘अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस’ से ठीक पहले शुक्रवार को प्रकाशित अपनी एक नई रिपोर्ट में देशों से प्रवासी कामगारों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिये और अधिक प्रयासों की पुकार लगाई है.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने सचेत किया है कि कामकाज की तलाश में किसी अन्य देश का रुख़ करने वाले प्रवासियों को अपने मानवाधिकार त्यागने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

We wanted workers, but human beings came शीर्षक वाली यह रिपोर्ट एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के भीतर और वहाँ से अस्थाई श्रम कार्यक्रम के तहत होने वाले प्रवासन पर केन्द्रित है, जोकि विश्व में प्रवासियों के मूल स्थान की दृष्टि से सबसे बड़ा क्षेत्र है.

"We wanted workers, but human beings came" – New report on temporary labour migration programmes urges States to do more to uphold the rights of migrant workers. No one should have to give up their rights to be able to migrate for work: https://t.co/YW0c845qcB
#StandUp4Migrants https://t.co/ivvQcM9mum

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा, “प्रवासी कामगारों को अक्सर अमानुषिक बना दिया जाता है. उन्होंने कहा कि ये ध्यान रखना होगा कि वे भी मनुष्य हैं, उनके मानवाधिकार हैं, और उनकी मानवीय गरिमा की पूर्ण रक्षा की जानी होगी.

हर साल, लाखों लोग अस्थाई श्रम प्रवासन कार्यक्रमों के तहत अपने देशों को छोड़कर, अन्य देशों का रुख़ करते हैं, जहाँ उनके गंतव्य स्थानों के लिये आर्थिक लाभ और उनके मूल देशों के लिये विकास से प्राप्त होने वाले फ़ायदे का वायदा होता है.

रिपोर्ट बताती है कि किस तरह अनेक मामलों में अस्थाई कार्य योजना, मानवाधिकारों पर विविध प्रकार की अस्वीकार्य पाबन्दी थोपती है.

प्रवासी कामगारों को अक्सर भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर गन्दगी भरे माहौल में रहने के लिये मजबूर किया जाता है, उनके पास पोषक आहार के सेवन की क्षमता नहीं होती.

साथ ही, उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल मुहैया नहीं कराई जाती है, और कामगारों को लम्बे समय के लिये अपने परिवार से दूर जीवन गुज़ारना पड़ता है.

कुछ देशों में, उन्हें सरकारी समर्थन वाली योजनाओं से दूर रखा जाता है, जिसे कोविड-19 जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों के दौरान उनके लिये जोखिम गहरा जाता है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “उनसे यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि काम के लिये प्रवासन के बदले वे अपने अधिकारों को त्याग देंगे, भले ही यह उनके और उनके परिवारों, और मूल व गंतव्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये कितना ही महत्वपूर्ण क्यों ना हो.”

रिपोर्ट में नाम सार्वजनिक किये बिना, एक देश का उदाहरण दिया गया है जहाँ, स्थाई निवासियों और नागरिकों से विवाह करने के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता है.

एक अन्य उदाहरण में, कुछ चिन्हित पारिवारिक ज़ोन में, अस्थाई प्रवासियों को मकान किराये पर नहीं दिया जा सकता है, चूँकि कामगारों को अपने परिवार के साथ प्रवासन की अनुमति नहीं है.

अति-व्यस्त, कठिन जीवन

साल के कुछ महीने चलने वाली योजनाओं के तहत, प्रवासियों को शनिवार व रविवार को भी काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें धार्मिक सेवा व उपासना के लिये समय नहीं मिल पाता है.

कुछ अन्य देशों में प्रवासी घरेलू कामगारों ने बताया कि कार्य विस्तृत क्षमताएं के दौरान पूजा या व्रत रखने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिये जाने की धमकी दी गई.

निर्माण कार्य से जुड़े कुछ प्रवासी कामगारों को नियोक्ता (employer) द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवा का स्तर ख़राब है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त टर्क ने ज़ोर देकर कहा कि, “देशों को व्यापक, मानवाधिकार-आधारित श्रम प्रवासन नीतियों के साथ-साथ, एशिया व प्रशान्त में और वहाँ से प्रवासन गलियारे बनाने होंगे. अस्थाई कार्यक्रमों के विकल्प के तौर पर, जो कभी-कभी बेहद पाबन्दी भरे, और शोषणकारी होते हैं.”

उन्होंने सचेत किया कि मानवाधिकारों को ठेस पहुँचाने वाले क़दमों को यह कहकर न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है कि प्रवासियों का आप्रवासन दर्जा अस्थाई है.

ना ही देश सभी प्रवासी कामगारों व उनके परिवारों के मानवाधिकारों का ज़िम्मा नियोक्ताओं व अन्य निजी पक्षों को सौंप सकते हैं.

न्याय के चार साल : छत्तीसगढ़ में और बढ़ेगा बिजली का उत्पादन

रायपुर। छत्तीसगढ़ में ऊर्जा उत्पादन के इतिहास में एक मील का पत्थर और स्थापित हो गया जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 25 अगस्त को 1320 मेगावाट के नए पॉवर प्लांट लगाने का निर्णय लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ को बरसों बरस तक जीरो पॉवर कट स्टेट बनाए रखने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला है। यह निर्णय इसलिये भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक संयंत्र होगा। इसकी स्थापना से छत्तीसगढ़ स्टेट जनरेशन कंपनी के स्वयं की विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़कर 4300 मेगावाट हो जाएगी।

छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसे जीरो पॉवर कट के रूप में जाना जाता है। यहां उपभोक्ताओं को 24×7 बिजली आपूर्ति हो रही है। किसी भी प्रदेश की तरक्की का सबसे बड़ा सूचक वहां के ऊर्जा की खपत को माना जाता है। छत्तीसगढ़ में ऊर्जा की खपत तेजी से बढ़ रही है। राज्य स्थापना के समय जहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 300 यूनिट थी, वह आज बढ़कर 2044 यूनिट पहुंच चुकी है। भविष्य में ऊर्जा की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने बड़े और ऐतिहासिक फैसले लिये हैं।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद पॉवर जनरेशन कंपनी के कोरबा पश्चिम में 660-660 मेगावाट के दो सुपर क्रिटिकल नवीन विद्युत उत्पादन संयंत्र लगाने की कार्ययोजना बनाने पर कार्य प्रारंभ हो गया है। इस संयंत्र के निर्माण में 12915 करोड़ रुपए का व्यय अनुमानित है। इन दोनों इकाइयों को वित्तीय वर्ष 2029 और 2030 में पूर्ण करने का लक्ष्य है। राज्य स्थापना के बाद पहली बार इतनी क्षमता का विद्युत संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदर्शिता को दर्शाता है।

छत्तीसगढ़ की धरती में अकूत खनिज संसाधन हैं। कोयले के भंडार मामले में छत्तीसगढ़ देश में तीसरे नंबर पर है। इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देशभर के पॉवर प्लांट में हो रहा है। परन्तु इसका लाभ इस धरती के निवासियों को नहीं मिल पाता है। अगर यहां के खनिज संसाधनों से संबंधित उद्योग यहीं स्थापित होते हैं तो यहीं के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलता है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की केबिनेट ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरा बड़ा फैसला पानी से बिजली बनाने के क्षेत्र में लिया है। केबिनेट में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 को मंजूरी दी गई है। वर्तमान में जो जल विद्युत संयंत्र हैं, उनमें बांध में बारिश के पानी को एकत्रित किया जाता है और उसे टरबाइन में बहाकर बिजली पैदा की जाती है। इस पुराने तकनीक में पानी का इस्तेमाल केवल एकबार ही किया जाता है।

वर्तमान में नई पंप स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजना तैयार की गई है, जिसमें एक ही पानी का इस्तेमाल कई बार किया जा सकेगा। इस तकनीक में बांध के ऊपर एक और स्टोरेज टैंक बनाया जाता है। दिन के समय सौर ऊर्जा से मिली सस्ती बिजली से इस टैंक में पानी स्टोरेज किया जाएगा और रात में उसे टरबाइन में गिराकर बिजली पैदा की जाएगी। यह पानी फिर से बांध में एकत्रित कर लिया जाएगा। इस तरह एक ही पानी का बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा।

छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी ने प्रदेश में ऐसे पांच स्थानों पर पंप स्टोरेज जल विद्युत गृह की स्थापना के लिए विस्तृत कार्ययोजना बना रही है। इन पांच स्थानों पर 7700 मेगावाट बिजली पैदा हो सकेगी। डीपीआर बनाने के विस्तृत क्षमताएं लिए केंद्र सरकार की एजेंसी वैपकास (वाटर एंड पॉवर कंसल्टेंसी सर्विसेस लिमिटेड) के साथ 29 नवंबर को एमओयू किया गया है। राज्य में पम्प स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना हेतु निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 6 सितम्बर को आयोजित केबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 का अनुमोदन किया गया।

इन दोनों फैसलों से यहां के निवासियों के लिये रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। संयंत्र की स्थापना से लेकर उसके संचालन के लिये जहां हजारों लोगों को सीधा रोजगार मिलेगा। इस संयंत्र की स्थापना अत्याधुनिक तकनीक से की जाएगी, जिसमें बहुत कम प्रदूषण होगा। इससे भविष्य में ऊर्जा की बढ़ती मांग पूरी हो सकेगी। इस फैसले से प्रदेश में उद्योग से लेकर कृषि क्षेत्र में प्रगति के नए पंख लगेंगे और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति मिलेगी। यह फैसला आने वाले बरसों में छत्तीसगढ़ के लिये मील का पत्थर होगा।

आलेख-गोविंद पटेल, प्रबंधक (जनसम्पर्क),
छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनी

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