नाम से भी ज्यादा दमदार हैं ड्रैगन फ्रूट के फायदे, कैंसर-डायबिटीज समेत ये 7 गंभीर रोग रहते हैं दो फुट दूर
What are benefits of dragon fruit: ड्रैगन फ्रूट विटामिन सी और अन्य एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, जो आपके इम्यून सिस्टम के लिए अच्छा होता है। यह आपके आयरन के स्तर को बढ़ा सकता है। इसके अलावा भी इस फल के कई फायदे हैं जिन्हें आप यहां जान सकते हैं।
नाम से भी ज्यादा दमदार हैं ड्रैगन फ्रूट के फायदे, कैंसर-डायबिटीज समेत ये 7 गंभीर रोग रहते हैं अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान दो फुट दूर
क्या है ड्रैगन फ्रूट? ड्रैगन फ्रूट को पिठाया या स्ट्रॉबेरी नाशपाती के रूप में भी जाना जाता है। यह खाने में रसीला और मीठा लकता है। इसके अनूठे रूप और प्रशंसित सुपरफूड शक्तियों ने इसे खाद्य पदार्थों और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया है। वैसे तो यह दक्षिण अमेरिका का फल है। लेकिन इसके गुणों और फायदों को देखते हुए अब इसे दुनियाभर उगाया जाने लगा है। इसका सेवन सलाद, मुरब्बा, जेली और शेक के रूप में किया जा सकता है।
डायबिटीज में ड्रैगन फ्रूट है फायदेमंद
एनसीबीआई के अनुसार, ड्रैगन फ्रूट में नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव के साथ-साथ फ्लेवोनोइड, फेनोलिक एसिड, एस्कॉर्बिक एसिड और फाइबर पाया जाता है। यह ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करने का काम करते हैं। जिन लोगों को डायबिटीज नहीं है, उनके लिए ड्रैगन फ्रूट्स का सेवन डायबिटीज से बचने का रक्षाकवच साबित हो सकता है।
हेल्दी हार्ट के लिए खाएं ड्रैगन फ्रूट
दिल संबंधित बीमारियां ज्यादा शरीर में दूसरी कई तरह की परेशानियों का नतीजा होती है। ऐसे में ड्रैगन फ्रूट हार्ट को सेफ और हेल्दी रखने का काम करता है। इस फल की बीजों में ओमेगा-3 और ओमेगा-9 फैटी एसिड मौजूद होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक हो सकते है।
कैंसर के मरीजों के लिए सेहतमंद है ड्रैगन फ्रूट
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, ड्रैगन फ्रूट में एंटीट्यूमर, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाएं जाते हैं। ये खास गुण महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर से बचाने में मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही यह फल कैंसर के मरीजों को आराम पहुंचाने का काम करता है।
कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है ड्रैगन फ्रूट
ड्रैगन फ्रूट का सेवन टोटल कोलेस्ट्रॉल ट्राइग्लिसराइड और खराब LDL लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। जिसकी अधिक मात्रा स्ट्रोक और हार्ट संबंधित बीमारियों का कारण बनती है। वहीं, यह अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी मदद करता है।
गठिया में ड्रैगन फ्रूट है मददगार
गठिया का दर्द जोड़ों का दर्द होता जो सूजन या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से होता है। बताया जाता है कि ड्रैगन फ्रूट एंटीऑक्सीडेंट से समृद्ध होता है। जिससे गठिया के दर्द से आराम दिलाने में मदद कर सकता है।
इम्यूनिटी बूस्टर है ड्रैगन फ्रूट
ड्रैगन फ्रूट में मौजूद विटामिन सी और कैरोटीनॉयड आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा सकते हैं। जिससे आपका शरीर सफेद रक्त कोशिकाओं को नुकसान से बचाकर संक्रमण को रोकने में सक्षम हो जाता है।
ब्रेन को फिट रखता है ड्रैगन फ्रूट
ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस शारीरिक और मानसिक नुकसान पहुंचाता है। जिसके कारण ब्रेन डिसफंक्शन जैसे अल्जाइमर रोग, पार्किन्सन रोग व मिर्गी आदि जैसे रोग हो सकते हैं। इस तरह के डीजेनेरेटिव रोगों से आराम पाने में ड्रैगन फ्रूट के फायदेमंद साबित हो सकता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
Gold Investment Tips: सोना खरीदकर आपको हो सकता है 'नुकसान', गांठ बांध लें ये 4 बातें
सोने में निवेश के वक्त आपको सावधानी भी बरतनी चाहिए। नहीं तो फायदा देने वाला सोना नुकसान का कारण भी बन सकता है।
Written by: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated on: June 25, 2022 12:57 IST
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Highlights
- सावधानी न बरती तो फायदेमंद सोना नुकसान का कारण भी बन सकता है
- मेकिंग और डिजाइनिंग चार्जेज के चलते सोना अधिक महंगा हो जाता है
- डिजिटल गोल्ड के जोखिम की बात करें तो यहां कोई रेग्युलेटर नहीं है
सोना हमेशा से समृद्धि का प्रतीक रहा है। तभी तो कहा जाता है कि 'आपके पास है सोना तो जिंदगी भर चैन की नींद सोना'। भारत में पारंपरिक रूप से कुछ खास अवसरों पर सोना खरीदना काफी शुभ माना जाता है। आज के दौर में जहां शेयर मार्केट, मनी मार्केट, म्यूचुअल फंड और अन्य दूसरे निवेश के विकल्प मौजूद हैं, तब भी सोने के प्रति निवेशकों का आकर्षण कम नहीं हुआ है। लेकिन सोने में निवेश के वक्त आपको सावधानी भी बरतनी चाहिए। नहीं तो फायदा देने वाला सोना नुकसान का कारण भी बन सकता है। आज सोने में निवेश के कई विकल्प में इतने विकल्पों के बीच आपको सोने में निवेश से पहले कुछ बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए। आज हम इन्हीं बातों की चर्चा कर रहे हैं।
क्या सुनार की दुकान से खरीदें सोना?
पहला सवाल आता है कि आप सोना किस प्रकार खरीद सकते हैं। एक तरीका पारंपरिक है यानि फिजिकल गोल्ड (Physical Gold), इसे खरीदने के लिए आप सुनार की दुकान पर जाते हैं और गहने या गिन्नी खरीदते हैं। यदि आप ज्वैलरी या गिन्नी खरीदते हैं तो इसके चोरी होने का डर हमेशा आपका ब्लडप्रैशर बढ़ा सकता है, वहीं लोकल सुनार से खराब क्वालिटी का खतरा भी बना रहता है। एक नुकसान यह भी है कि मेकिंग और डिजाइनिंग चार्जेज के चलते यह अधिक महंगा हो जाता है। इसे आप लॉकर आदि में रखते हो तो आपको उस पर भी पैसा खर्च करना पड़ेगा। वहीं समस्या गुणवत्ता को लेकर भी है। जब आप इसे बेचने जाते हैं तो आपको इसकी पूरी कीमत भी नहीं मिलती।
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डिजिटल गोल्ड में हैं क्या खतरे
आज सोने की खरीद का एक इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट है। आप डिजिटल गोल्ड (Digital Gold), गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF), गोल्ड म्यूचुअल फंड्स (Gold Mutual Funds), सॉवरेन गोल्ड बांड्स (Sovereign Gold Bonds) आदि माध्यमों पर भी गौर कर सकते हैं। डिजिटल गोल्ड के जोखिम की बात करें तो यहां कोई रेग्युलेटर नहीं है। यानि आपके साथ धोखाधड़ी होने पर आपके पास ज्यादा विकल्प नहीं रह जाते। हालांकि गोल्ड इटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड्स सेबी की निगरानी के साथ आते हैं। इसके अलावा सॉवरेन गोल्ड बांड के साथ रिस्क बहुत ही कम है।
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टैक्स घटा सकता है आपका रिटर्न
देश में हर कमाई पर आपको टैक्स देना ही पड़ता है। यह व्यवस्था सोने पर भी लागू है। जब इन्वेस्टमेंट मैच्योर होता है या जब आप सोना बेचते हैं, उस समय आपको टैक्स देना होता है। फिजिकल गोल्ड, डिजिटल गोल्ड, गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड्स की बिक्री से मिले कैपिटल गेन पर टैक्स लगता है। अगर सोने को तीन साल अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान के अंदर मुनाफे के साथ बेचा जाता है, तो इस पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। अगर सोना तीन साल के बाद मुनाफे पर बेचा जाता है, तो इस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। जो 20 फीसदी तक हो सकता है। सॉवरेन गोल्ड बांड से प्राप्त हुआ सारा ब्याज आपकी आय में जुड़ता है, और इस पर आपके इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगता है। अगर सॉवरेन गोल्ड बांड आठ साल बाद रिडीम किया जाता है, तो सारा कैपिटल गेन पूरी तरह टैक्स फ्री होता है।
सोने ने दिया कितना रिटर्न
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शेयर बाजार से लेकर दूसरे निवेश में भले ही आपको नुकसान हुआ हो, लेकिन सोने में निवेश आपको निराश नहीं किया। सोने ने पिछले 40 वर्षों में 9.6 फीसद की दर से सालाना रिटर्न दिया है। रिस्क के नजरिये से सोने ने इक्विटीज की तुलना में निश्चित रूप से कम अस्थिरता दिखाई है। अक्सर देखा गया है कि अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आती है या कोई बड़ी वित्तीय आपदा आती है तो सोने में रिटर्न बढ़ता है। उदाहरण के लिए 1991-92 में ईराक युद्ध, 2000 में अमेरिका पर हमला, 2008/2009 अमेरिकी मंदी और साल 2020 में कारोना संकट के बीच सोने ने अच्छा रिटर्न दिया।
WTO के फैसले से भारत को शॉर्ट टर्म नुकसान, अब लांग टर्म फायदे की बारी
विश्व व्यापार संगठन ने भारत-अमेरिका व्यापार विवाद के एक मामले का निपटारा तो कर दिया, लेकिन भारत उस फैसले से खुश नहीं होगा. आयात-निर्यात को अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान संतुलित करना और राजस्व घाटे को कम करने के लिहाज से भारत को ये झटका जरूर लगा है लेकिन सरकार इसका कोई विकल्प ढ़ूंढ़ने को तत्परता में है.
- भारत का निर्यात ग्राफ लगातार बढ़ा
- अमेरिका को भी लगाई लताड़
- अमेरिकी उत्पादों को बड़ा नुकसान
- इलेक्ट्रॉनिक्स और तकनीकी सामानों पर एक्सपोर्ट ओरिन्टेड यूनिट्स स्कीम
- मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट्स
- एक्सपोर्ट प्रोमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम
- स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स
- ड्यूटी फ्री इम्पोर्ट्स फॉर एक्सपोर्ट्स प्रोग्राम
ट्रेंडिंग तस्वीरें
नई दिल्ली: पिछले दिनों भारत को अमेरिका से विश्व व्यापार संगठन में राजनायिक हार का सामना करना पड़ा. ये मामला कुछ और नहीं, अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए भारत की ओर से एक्सपोर्ट सब्सिडिज का था. सीधे शब्दों में कहें तो भारत दूसरे देशों में निर्यात होने वाले उत्पादों पर कई स्कीमों के सहारे रियायतें बरत रहा था ताकि किसी तरह भारतीय निर्यात को आयात के हिसाब से संतुलित किया जा सके. इसी को लेकर अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर विश्व व्यापार संगठन यानी WTO में इस मामले की शिकायत की थी साल 2018 में ही. हाल ही में फैसला आया कि भारत का अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान ये कदम वैश्विक बाजार के लिहाज से खासकर अमेरिका के लिहाज से सही नहीं.
अमेरिकी उत्पादों को बड़ा नुकसान
दरअसल, अमेरिका ने WTO से शिकायत की थी कि भारत के सब्सिडी स्कीमों से उनका निर्यात तो बढ़ रहा है लेकिन रियायतें बरत कर भारत अमेरिका के उत्पादों को वैश्विक बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रहा है. इससे अमेरिकी उत्पादों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. अमेरिका ने इसके बाद व्यापार संबंधी विवादों के निपटारे के लिए ही बनाए गए विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटारे वाली बॉडी को अर्जी डाली कि भारतीय स्कीम और रियायतें अमेरिकी कंपनियों को आर्थिक नुकसान की ओर धकेल रही हैं. WTO की विवाद निपटारे वाली बॉडी में संगठन की एक विशेष असेंबली है जिसमें सारे सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व है.
भारत का निर्यात ग्राफ लगातार बढ़ा
मालूम हो कि भारत ने अपने निर्यात को संतुलित करने को इन स्कीमों को लागू किया था. भारत 2018-19 में 507 बिलियन डॉलर के उत्पाद आयात किए जबकि निर्यात 331 बिलियन डॉलर पर ही रहा. कॉमर्स और उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से पता चला कि भारत को इन निर्यात रियायतों से काफी फायदा हुआ है. 2015-16 में भारत का निर्यात 250 बिलियन के करीब था जिसमें 2018-19 के ग्राफ में बढ़ोत्तरी हुई है.
शर्तों का किया उल्लंघन
गुरूवार को संगठन की तीन सदस्यीय विवाद निपटारे कमिटी ने कहा कि भारत ने निर्यात रियायतें देकर विश्व व्यापार संगठन के सब्सिडिज और काउंटरवेलिंग पैमाने की शर्तों को तोड़ा है. दरअसल, SCM की शर्तों के अनुच्छेद 3.1 के तहत विकासशील देश जिसकी सालाना आय 1,000 डॉलर के जितनी हो यानी 71,000 रूपए के करीब उसे किसी भी तरह के निर्यात सब्सिडिज की इजाजत नहीं है. जबकि भारत की सालाना आय औसतन 2,000 डॉलर है यानी 1,42,000 रूपए. पैनल में मौजूद जोस एंटोनियो, लियोरा ब्लूमबर्ग, और सर्ज पैनशियर ने हालांकि भारत को 3 से 6 महीने का वक्त दिया है सारी रियायतों को खत्म करने के लिए.
5 अहम निर्यात रियायत स्कीम
हालांकि, भारत ने पहले ही स्कीमों को धीरे-धीरे खत्म करना शुरू कर दिया था. साल 2015 में और साल 2017 में बहुत सी स्कीमों को खत्म कर दिया गया है लेकिन 5 अहम स्कीम अब भी सक्रिय हैं. राजस्व घाटे को संतुलित करने के लिए भारत सरकार ने प्रोमोशन स्कीम्स को बढ़ावा देने की ठानी और 5 अहम रियायतें बरतनी शुरू की.
अमेरिका अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान को भी लगाई लताड़
ऐसा नहीं है कि भारत को सिर्फ फटकार मिली है. विश्व व्यापार संगठन ने अमेरिका के पक्षको भी लताड़ा है. अमेरिका ने अपील की थी कि पैनल भारत को उसके देसी सामानों से केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी को माफ करे जिसे संगठन ने खारिज कर दिया. अब भारतीय राजनायिक इस फैसले के बाद समीक्षा में लगे अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान हैं. पिछले दिनों विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी हुआ जिसमें बताया कि इस फैसले से भारतीय कंपनियों के निर्यात पर तो असर जरूर पड़ेगा लेकिन भारत इसे संतुलित कर लेगा. स्टील प्रोडक्ट्स, फॉर्मास्यूटिकल्स, केमिकल्स, आईटी उत्पाद और कपड़ा उद्योग को इसका जरा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
हालांकि, इसके अलावा भारत चाहे तो अपीलियट बॉडी में शिकायत कर सकता है लेकिन उसके पास इन रियायतों के लिए कोई तर्क होना जरूरी है. अपीलियट बॉडी सबकुछ सुनने के बाद पैनल के पुराने फैसले को बदल तक सकती है.
क्या Diwali पर सोना खरीदने का प्लान बना रहे हैं? पहले फिजिकल गोल्ड के फायदे और नुकसान को समझें फिर फैसला लें
अगर आप भी इस दिवाली पर फिजिकल गोल्ड खरीदना चाहते हैं तो इस बात को समझें कि इसके क्या फायदे हैं और क्या नुकसान हैं. फिजिकल गोल्ड के अलावा सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, डिजिटल गोल्ड और गोल्ड ईटीएफ में भी निवेश करने का विकल्प उपलब्ध है.
Diwali 2022: दिवाली का पर्व नजदीक आ गया है. इस मौके पर सोने में जमकर खरीदारी की जाती है. भारत गोल्ड का बहुत बड़ा कंज्यूमर है और सोना खरीदना काफी शुभ भी माना जाता है. फिलहाल यह 50 हजार रुपए प्रति दस ग्राम के स्तर पर चल रहा है. पिछले कुछ समय से इसकी कीमत पर दबाव बना हुआ है. अगर आप भी सोना खरीदने का प्लान बना रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि ज्वैलर्स के पास जाकर फिजिकल गोल्ड ही खरीदें. फिजिकल गोल्ड खरीदने के फायदे और नुकसान को समझना जरूरी हो गया है, क्योंकि अब डिजिटल गोल्ड, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ETF को भी खरीदने की सुविधा है. आइए इसके बारे में Credence Wealth Advisors के फाउंडर कीर्तन ए शाह से जानते हैं कि आपके लिए क्या अच्छा विकल्प है.
फिजिकल गोल्ड खरीदने के फायदे
कीर्तन शाह (Kirtan A Shah) ने कहा कि अगर आप किसी ज्वैलर्स के पास जाकर सोना खरीदते हैं तो यह टैंजिबल होता है. मतलब आप इसे छू सकते हैं. यह सीक्रेट बाइंग होती है और अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान लेनदेन कैश में भी किया जा सकता है. इसे ट्रेस करना मुश्किल होता है. इसके अलावा यह बहुत ज्यादा लिक्विड होता है.
फिजिकल गोल्ड के नुकसान
नुकसान यह है कि चोरी का डर रहता है. प्योरिटी को लेकर धोखा हो सकता है. ज्वैलरी बनाने पर मेकिंग चार्ज 35 फीसदी तक होता है. बेचने पर 3 फीसदी का जीएसटी लगता है.फिजिकल अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान गोल्ड बेचना भी कठिन होता है, क्योंकि अलग-अलग ज्वैलर्स के अपने-अपने नियम हैं.
किस तरह होता है टैक्स का हिसाब
टैक्सेशन की बात करें तो अगर तीन साल से पहले फिजिकल गोल्ड बेचते हैं तो कैपिटल गेन शॉर्ट टर्म कहलाता है और यह आपकी टोटल इनकम में शामिल हो जाती है. तीन साल बाद बेचने पर यह लॉन्ग टर्म कैपिटल अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान गेन कहलाता है. इसपर 20 फीसदी का टैक्स लगता है.
गिरते रुपए से टूट रहीं अमेरिका में भारतीय विद्यार्थियों की उम्मीदें
अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के कमजोर होने से छात्रों की विदेश में पढ़ाई की योजनाओं पर गहरा असर पड़ेगा और वित्तीय बोझ बढ़ेगा।’
रुपया दिन-प्रतिदन अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर को छू रहा है । ऐसे में भारतीय छात्रों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने का सपना पूरा करना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए अधिक पैसा खर्च करना होगा और अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें ऐसे देश का चुनाव करना होगा, जहां पढ़ाई अपेक्षाकृत सस्ती हो।
एक ओर, वित्तीय संस्थानों को लगता है कि चिंताएं वास्तविक हैं और भारी-भरकम शिक्षा ऋण लेने की जरूरत बढ़ सकती है, तो विदेश में रहने वाले शिक्षा सलाहकारों का मानना है कि उन छात्रों को इतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, जो पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में काम करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिका में कानून की पढ़ाई करने की योजना बना रहे पुष्पेंद्र कुमार ने कहा, ’अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपया नए रिकार्ड निचले स्तर पर चला गया है, जिससे विदेश में पढ़ाई करने की चाह रखने वालों की चिंताएं बढ़ गई हैं और यह उनकी पहुंच से बाहर हो गई है।
अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा के कमजोर होने से छात्रों की विदेश में पढ़ाई की योजनाओं पर गहरा असर पड़ेगा और वित्तीय बोझ बढ़ेगा।’ उन्होंने कहा, ’मेरे अन्य दोस्त पढ़ाई के लिए किसी और देश का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन मैं दीर्घकालिक योजनाओं पर विचार नहीं कर रहा। हर देश में अलग-अलग कानूनी व्यवस्था होती है और वकील के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए अलग-अलग शिक्षा की आवश्यकता होती है। मेरे पास विकल्प नहीं है। जब तक मैं वहां पहुंचकर स्रातक की पढ़ाई शुरू करूंगा, तब तक खर्च और बढ़ जाएगा।’
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इस सप्ताह रुपया अमेरिकी मुद्रा डालर के मुकाबले 80 के अंक को छूकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत से 13.24 लाख से अधिक छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेश गए हैं, जिनमें से अधिकांश अमेरिका (4.65 लाख), इसके बाद कनाडा (1.83 लाख), संयुक्त अरब अमीरात (1.64 लाख) और आस्ट्रेलिया (1.09 लाख) में हैं। ’एचडीएफसी क्रेडिला’ के एमडी. और सीईओ. अरिजीत सान्याल का मानना है कि रुपये के स्तर में गिरावट से विदेश में पढ़ने के इच्छुक भारतीय छात्रों के पढ़ाई के खर्च में वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं।
सान्याल कहते हैं, ’शिक्षा ऋण देने वाले कर्जदाता की नजर से देखें तो इससे पढ़ाई का बोझ बढ़ेगा क्योंकि उधार लेने वाले को ट्यूशन फीस और दूसरे खर्चों को वहन करने के लिए भारी-भरकम कर्ज लेने की जरूरत पड़ेगी। हालांकि इस समय जो लोग कर्ज चुकाने के चरण में हैं, यदि वे डालर में कमाई कर रहे हैं, तो उनके लिए कर्ज चुकाना आसान होगा।’ ट्यूशन फीस और रहने का खर्च विदेश में पढ़ाई करते समय छात्रों के खर्च के दो अमेरिकी विकल्पों के फायदे और नुकसान मुख्य घटक होते हैं। रुपए में गिरावट का मतलब फीस और रहने के खर्च में वृद्धि होना है क्योंकि पहले की तुलना में एक डालर रुपए के मुकाबले महंगा हो जाएगा।
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